Monday, November 26, 2018

मेरा हरियाणा

यो इसा मेरा हरियाणा था..
जित दूध दही का खाणा था..
बैठक में हुक्का बाज्या करता..
एक मोर मंडेरे नाच्या करता..
कतई सीधा सादा बाणा था..
यो इसा मेरा हरियाणा था..
जित दूध दही का खाणा था..
मदद ने हर हाथ तैयार होया करता..
आपस में प्यार होया करता...
ना किते कोई चौकी थाना था...
यो इसा मेरा हरियाणा था..
जित दूध दही का खाणा था..
बीर दामण में इतराया करती..
पनघट पर तै पानी ल्याया करती..
मर्दां का धोती कुरते का बाणा था..
यो इसा मेरा हरियाणा था..
जित दूध दही का खाणा था..
इब नशे में युवा चूर रहवै..
घर कुणबे तै दूर रहवै..
पहल्यां मेहनत तै खेत कमाणा था..
यो इसा मेरा हरियाणा था..
जित दूध दही का खाणा था..
मनीष इब कतई नाश हो लिया..
बैर इब सबका खास हो लिया..
पहल्यां यहां भाईचारे का ठिकाना था..
यो इसा मेरा हरियाणा था..
जित दूध दही का खाणा था..

Saturday, June 18, 2016

दादा जोहड़ वाले मन्दिर पर विशाल भण्डारा

हर साल की तरह इस साल भी गांव में दादा जोहड़ वाले के मन्दिर पर विशाल भण्डारे का आयोजन किया गया। दादा जोहड़ वाला सेवा समिति के सदस्यों ने पूरे गांव में चंदा इकट्ठा कर भण्डारे का आयोजन करवाया।
भण्डारे से पहली रात को जागरण का प्रोग्राम करवाया गया था। इस बार मन्दिर में छोटे स्तर पर मेला भी लगाया गया था।हालांकि ये शुरूआत है अब धीरे धीरे ये मेला विशाल स्तर पर आयोजित किया जाएगा। भण्डारे में गांव वालों और आसपास के गांवों से आए लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। गांव वालों ने बढ चढ कर भण्डारे में सेवा की। मेले की शुरूआत अपने आप में एक सराहनीय कदम है। इससे गांव में बाहर से आने वाले लोगों की संख्या में इजाफा होगा। और दादा जोहड़ वाले की ख्याति और दूर दूर तक फैलेगी। हमेशा से लोगों की श्रद्धा का केन्द्र रहा दादा जोहड़ वाला मन्दिर अपने आप में एक अद्भुत इतिहास समेटे हुए है। यहां इस जोहड़ को मिले वरदान के अनुसार अगर किसी को सांप काट ले और वो इस जोहड़ मे नहा ले तो सांप के जहर का असर खत्म हो जाता है।

Wednesday, January 20, 2016

पहली रोटी गाय की: एक पहल

गाय को वेदों और पुराणों में माता का दर्जा दिया गया है।हिंदु लोग गाय की पूजा करते हैं। प्राचीनकाल से ही गाय पूजनीय रही है। कहा जाता है कि गाय में 86 करोड़ देवी देवता निवास करते हैं।
लेकिन आज कलयुग में यही गौ माता दर दर भटकने को मजबूर हो गयी है।गौमाता आज इस तरह से बेसहारा हो गयी है कि धरती पर आज उसका खुद का जीवन गुजर बसर करना दुभर हो गया है।
लेकिन आज भी कुछ लोगो में मानवता बाकि है। इसी का नतीजा है कि एक बार फिर से गौमाता को आसरा देने के लिए दानी सज्जनों और गौ सेवको की मेहनत से जगह जगह पर गौशालाये खोली गयी है।इन गौशालाओं में गाय के लिए चारा पानी और उनकी उचित देखभाल की पूरी व्यवस्था होती है।
इसी पहल में गाँव गोयला कलां में भी एक गौशाला का निर्माण किया गया है। इसमें गाय के चारे पानी और देखभाल का उचित प्रबंध है। कहते है पहली रोटी गाय की। इसी को देखते हुए गौशाला की तरफ से एक नयी पहल की गयी है। अधिकतर औरते घर परिवार के काम में व्यस्त होने के कारण गाय की रोटी नही पंहुचा पाती। इसलिए गौशाला की तरफ से एक रिक्शा का प्रबंध किया गया है जो रोज सुबह घर घर जाकर गाय की रोटी और चारा लाने के लिए पुरे गाँव का चक्कर लगाती है।
हम सबको चाहिए कि इसमें हम अपना योगदान देकर गौमाता को एक बार फिर से उसी पूजनीय स्तिथि में पंहुचा सके।सारे हिन्दु भाइयो को एक गौ माता अपने घर में पालना चाहिए। इसी पहल से हम गौ माता की रक्षा कर सकेंगे।

Sunday, January 17, 2016

खत्म हुआ चुनावी दंगल, हुआ चौधर का फैसला

अन्त भला तो सब भला। जी हाँ महीनो से चला आ रहा चौधर का इंतजार आख़िरकार खत्म हुआ। सरकार और जनता के बीच चली लम्बी क़ानूनी लड़ाई में सरकार ने जीत हासिल की और इस बार चुनाव में पहली बार उम्मीदवार का शिक्षित होना अनिवार्य हुआ। इस नियम के लागू होने से जहा कुछ लोगो ने इसको एक सराहनीय कदम बताया वही दुसरी और कई लोगो की चुनाव लड़ने की उम्मीदों पर पानी फिर गया।
गाँव गोयला कलां में भी इस नियम के लागु होने से कई लोगो की उम्मीदों पे पानी फिर गया और गाँव में पहली बार सिर्फ 3 उम्मीदवार चुनावी मैदान में आमने सामने थे। मुकाबला कांटे का था। तीनो ही उम्मीदवार एक दुसरे से बिल्कुल अलग परवर्ति के थे। पहले उम्मीदवार का जिक्र किया जाये तो जयपाल उर्फ़ जे पी धनखड़ सुपुत्र श्री राज सिंह मैदान में युवा जोश के साथ थे और पिछले लगभग एक साल से उन्होंने अपने इरादे साफ़ कर दिए थे। उनका चुनाव निशान साइकिल का था।लेकिन इस साइकिल को आगे बढ़ाने की जिम्मेवारी गाँव की जनता की थी।
वही दुसरी और देवेन्द्र उर्फ़ खन्ना भी अपने अनुभव और जनता से सीधे लगाव के साथ एक बार फिर से मैदान में थे। उन्हें जीत निश्चित नजर आ रही थी। उनका चुनाव चिह्न गिलास था। अब जनता को फैसला करना था गिलास को भरना है या टुकड़े टुकड़े करना है।
खन्ना की जीत की उम्मीदों को झटका तब लगा जब एक और उम्मीदवार सोमिन्द्र साध उर्फ़ धोला ने भी चुनावी मैदान में अपनी उपस्तिथि दर्ज करायी। खजूर के पेड़ के निशान के साथ सोमिन्द्र ने भी अपनी जीत की दावेदारी पेश की।उनकी साफ़ छवि को देखते हुए भी जनता के बीच वे लोकप्रिय थे।
तीनो और से जनता को लुभाने के लोक लुभावन दावे और कोशिशे की गयी व झांसे दिए गए।
अब जनता के हाथ में था कि साइकिल को चलाना है ,गिलास को भरना है या खजूर के पेड़ पर भरोसा जताना है।
आख़िरकार सबकी इंतजार की घड़ी खत्म हुई और चुनाव की निर्धारित तिथि 10 जनवरी आ गयी। सुबह 7:30 से शाम 4 बजे तक मतदान हुआ और इस बार गाँव में रिकॉर्ड मतदान हुआ।
कुल 2426 मतदाताओं में से 2188 ने मतदान किया। जो अब तक का गाँव में सर्वाधिक मतदान पर्तिशत है।
अब समय था फैसले का जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था। जैसे ही गिनती शुरू हुई तीनो उम्मीदवारों और उनके समर्थकों की साँसे मानो थम सी गयी थी।
लेकिन अन्ततः फैसला सुनाया गया और गाँव वालो ने अपना विश्वास साइकिल में दिखाया। जयपाल उर्फ़ जे पी धनखड़ 953 वोट लेकर विजयी घोषित हुए।जबकि दुसरे स्थान पर रहे देवेन्द्र उर्फ़ खन्ना को 607 वोट ही मिल पाए। वही तीसरे उम्मीदवार सोमिन्द्र को सिर्फ 558 वोट ही मिल सके।
गाँव की चौधर का फैसला हो चुका है। नवनिर्वाचित सरपंच जे पी धनखड़ ने पुरे गाँव में जीत की ख़ुशी में लड्डू बंटवाए।
इस फैसले से पिछले लगभग एक साल से चला आ रहा लोगो का नए सरपंच का इंतजार खत्म हुआ। लेकिन अभी भी ब्लॉक समिति का फैसला होना बाकि है जिसमे गाँव के 2 उम्मीदवार गाँव खेड़का गुज्जर के 2 उम्मीदवारों को चुनौती दे रहे है। इन 2 उम्मीदवारों में जहा एक और स्वर्गीय रिटायर्ड S.I. रामकंवार का बेटा आनंद उर्फ़ ढीले है दुसरी और रिटायर्ड S.I. उमेद सिंह है। अब देखना है कि बाजी दोनों में से किसके हाथ लगती है या कोई बाहरी इस बाजी में अपना वर्चस्व स्थापित करता है। इसका फैसला भी 28 जनवरी को हो जायेगा।
इस बार जिला परिषद में गाँव से कोई उम्मीदवार ना होने से लोग किसी को भी खुल कर सपोर्ट करने से बचते नजर आये लेकिन फिर भी गाँव का रुझान अंकुर गुभाना की तरफ ही ज्यादा रहा।
इसका फैसला भी 28 तारीख को ब्लाक समिति के साथ ही घोषित होगा।

Thursday, October 23, 2014

ELECTION FEVER

During Haryana assembely elections,there were 4 main candidates from Badli constituency. 1. OP DHANKHAR-BJP 2. KULDEEP VATS-IND 3. SUMITRA GULIA-INLD 4. NARESH PARDHAN-INC As now the result are out and the MLA is OP DHANKHAR from Badli who projected himself as the next CM of Haryana during the campaign. But the higher committee has ignored him and elected Sh. Manohar Lal Khattar as the next CM of Haryana. M.L. Khattar was a RSS member from last four decades and belongs to Punjabi family. Now the MLA election fever is over. Soon GRAM PANCHAYAT ELECTION will be held in village Goila Kalan. Let's see who will be the next SARPANCH of village.

Friday, July 25, 2014

TRUTH OF GANDHI-NEHRU

शहीदे आजम भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था, ‘‘हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए ।’’ और आगे कहा, ‘‘भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है । वहीं इसका परिणाम गुंडागर्दी का पतन है । फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे ।”अर्थात् गांधी की परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी । 2 ] इसी प्रकार एक ओर महान् क्रान्तिकारी जतिनदास को जो आगरा में अंग्रेजों ने शहीद किया तो गांधी आगरा में ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी । 3] जब सन् 1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा मनोनीत सीताभिरमैया के मध्य मुकाबला हुआ तो गांधी ने कहा यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे राजनीति छोड़ देंगे लेकिन उन्होंने अपने मरने तक राजनीति नहीं छोड़ी जबकि रमैया चुनाव हार गए थे। ४] इसी प्रकार गांधी ने कहा था, “पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा” लेकिन पाकिस्तान उनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे हमारे सत्यवादी गांधी । ५] इससे भी बढ़कर गांधी और कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी या लड्डू बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ? ६]गांधी ने अपने जीवन में तीन आन्दोलन (सत्याग्रहद्) चलाए और तीनों को ही बीच में वापिस ले लिया गया फिर भी लोग कहते हैं कि आजादी गांधी ने दिलवाई । ७]इससे भी बढ़कर जब देश के महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो गांधी ने उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद चौ० ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा सफल पाखण्डी लिखा है । 8]इस आजादी के बारे में इतिहासकार सी. आर. मजूमदार लिखते हैं – “भारत की आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना सच्चाई से मजाक होगा । यह कहना उसने सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई बहुत बड़ी मूर्खता होगी । इसलिए गांधी को आजादी का ‘हीरो’ कहना उन सभी क्रान्तिकारियोंका अपमान है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून बहाया ।” यदि चरखों की आजादी की रक्षा सम्भव होती है तो बार्डर पर टैंकों की जगह चरखे क्यों नहीं रखवा दिए जाते ...........?? अगर आप सहमत है तो इस दोगले कि सचाई "शेयर " कर के उजागर करे। जय हिन्द शहीदे आज़म भगत सिंह को फांसी कि सजा सुनाई जा चुकी थी ,इसके कारन हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद काफी परेसान और चिंतित हो गय। भगत सिंह कि फांसी को रोकने के लिए आज़ाद ने ब्रिटिश सरकार पर दवाब बनाने का फैसला लिया इसके लिए आज़ाद ने गांधी से मिलने का वक्त माँगा लेकिन गांधी ने कहा कि वो किसी भी उग्रवादी से नहीं मिल सकते। गांधी जनता था कि अगर भगत सिंह और आज़ाद जेसे क्रन्तिकारी और ज्यादा जीवित रह गय तो वो युवाओ के हीरो बन जायेंगे। ऐसी स्थति में गांधी को पूछने वाला कोई ना रहता। हमने आपको कई बार बताया है कि किस तरह गांधी ने भगत सिंह को मरवाने के लिए एक दिन पहले फांसी दिलवाई। खैर हम फिर से आज़ाद कि व्याख्या पर आते है। गांधी से वक्त ना मिल पाने का बाद आज़ाद ने नेहरू से मिलने का फैसला लिया ,27 फरवरी 1931 के दिन आज़ाद ने नेहरू से मुलाकात की। ठीक इसी दिन आज़ाद ने नेहरू के सामने भगत सिंह कि फांसी को रोकने कि विनती कि। बैठक में आज़ाद ने पूरी तैयारी के साथ भगत सिंह को बचाने का सफल प्लान रख दिया। जिसे देखकर नेहरू हक्का - बक्का रह गया क्यूंकि इस प्लान के तहत भगत सिंह को आसानी से बचाया जा सकता था। नेहरू ने आज़ाद को मदत देने से साफ़ मना कर दिया ,इस पर आज़ाद नाराज हो गय और नेहरू से जोरदार बहस हो गई फिर आज़ाद नाराज होकर अपनी साइकिल पर सवार होकर अल्फ्रेड पार्क कि होकर निकल गय। पार्क में कुछ देर बैठने के बाद ही आज़ाद को पोलिस ने चारो तरफ से घेर लिया। पोलिस पूरी तैयारी के साथ आई थी जेसे उसे मालूम हो कि आज़ाद पार्क में ही मौजूद है। आखरी साँस और आखरी गोली तक वो जाबांज अंग्रेजो के हाथ नहीं लगा ,आज़ाद कि पिस्तौल में जब तक गोलिया बाकि थी तब तक कोई अंग्रेज उनके करीब नहीं आ सका। आखिर कार आज़ाद जीवन भरा आज़ाद ही रहा और आज़ादी में ही वीर गति प्राप्त की। अब अक्ल का अँधा भी समज सकता है कि नेहरु के घर से बहस करके निकल कर पार्क में १५ मिनट अंदर भारी पोलिस बल आज़ाद को पकड़ने बिना नेहरू कि गद्दारी के नहीं पहुच सकता। नेहरू ने पोलिस को खबर दी कि आज़ाद इस वक्त पार्क में है और कुछ देर वही रुकने वाला है। साथ ही कहा कि आज़ाद को जिन्दा पकड़ने कि भूल ना करे नहीं तो भगत सिंह कि तरफ मामला बढ़ सकता है। लेकन फिर भी कांग्रेस कि सरकार ने नेहरू को किताबो में बच्चो का क्रन्तिकारी चाचा नेहरू बना दिया और आज भी किताबो में आज़ाद को "उग्रवादी" लिखा जाता है। लेकिन आज सच को सामने लाकर उस जाबाज को आखरी सलाम देना चाहते हो तो इस पोस्ट को शेयरs करके सच्च को सभी के सामने लाने में मदत करे। आज के दिन यही शेयर उस निडर जांबाज भारत माता के शेर के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

Wednesday, July 9, 2014

EDUCATIONAL INSTITUTES OF GOILA KALAN

The schools and collages are the temples of education. Good education makes bright future. There are two schools in the village which are as follows:- 1. Amrit Gyan High School- Upto 10th standard(The only private and English medium school of village) 2. Government Middle School- Upto 8th standard(The only Govt. School of the village where the poor children get good education as well as mid-day meal)